यह मानसिकग़ुलामी है जो हमें अंदर से ही जकड़ लेता है। हम खुद को बंधा हुआसोचते हैं जैसे कि एक पक्षी जो अपनीखुद की उड़ान नहीं कर read more सकता है जो हरघेरे को देखकर खुद को एक दुसरे पक्षी में पाता है। यह अनुभवका बोझ ही हमें मन का गुलाम बनाती है ।
मस्तिष्क के बंधन
चिंतन स्वतंत्रता का मार्ग है जो हमें अपने विचारों को पहचानने में मदद करता है। लेकिन| परन्तु, कभी-कभी ये विचार हमारी आत्मा को बंधन करते हैं, जो हमें नई ऊंचाइयों तक पहुँचने से रोकते हैं। यह एक परस्पर विरोधी स्थिति है जो हमें अपना जाल तोड़ना होगा।
- सकारात्मक विचारों से अपनी जागरूकता को पवित्र करें
- अपने विचारों पर नियंत्रण रखें| खुद का मालिकाना हक़ बनाए रखें| अपनी सोच की दिशा निर्धारित करें
बुद्ध की मन पर शक्ति
बुद्ध ज्ञान/विद्या/समझ के महापुरुष थे. उन्होंने अपनी आत्मा/मन/जीवन में पूर्ण शांति/संतुलन/निष्पक्षता प्राप्त की थी और इसी ज्ञान को अन्य लोगों तक पहुंचाने का उद्देश्य/लक्ष्य/प्रयास किया. उनके अनुसार, मानव मन/हृदय/आत्मा में अनेक विचारों/भावनाओं/अनुभवों का संचय होता रहता है जो अक्सर चिंता/भय/उन्मत्तता का कारण बनते हैं. बुद्ध ने ध्यान/योग/तपस्या के माध्यम से मन पर नियंत्रण हासिल करने का मार्ग बताया, जिससे व्यक्ति सच्चाई/ज्ञान/सुख की ओर बढ़ सकता है.
मन : एक शक्तिशाली हथियार
इंसान का विचारशक्ति एक बहुत ही शक्तिशाली शक्ति है ।
यह उसके भाग्य को तय कर सकता है।
अगर हम इसका सही उपयोग करते हैं तो , तो हम अपनी सफलता सुनिश्चित कर सकते हैं ।
परंतु अगर हम मन को खो देते हैं , तो यह नुकसान पहुँचा सकता है ।
शिक्षा, ध्यान और सामाजिक संपर्क मन को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं ।
आत्म-शक्ति और ध्यान
पहले से ही मजबूत होने वाले मानसिक तत्वों को मज़बूत बनाना देने में ध्यान सहायक होता है।
यह अनुशासन की क्षमता को बढ़ाकर, हमें अपने भावनाओं पर नियंत्रण रखने में मदद करता है। इस प्रकार, ध्यान से ही हम अपनी मनो-शक्ति का अधिकतम लाभ उठा सकते हैं।
प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए ध्यान ही एक महत्वपूर्ण आधार है, जो हमें दर्द का सामना करते समय भी शांतिपूर्ण रहने में मदद करता है।
जागरण से छुटकारा
प्रत्येक प्राणी का लक्ष्य ही है मुक्ति . यह साधन जीवन की सभी चुनौतियों से ऊपर उठने का होता है. चेतन होने से ही हम इस आध्यात्मिक यात्रा में सफल होते हैं.
यह त्याग का प्रक्रिया है, जहाँ दुनिया से हमारी परस्परता मिलती है. अज्ञानता के बंधनों से मुक्त होकर ही हम अपने सच्चे रूप को पा सकते हैं.
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